महिलाओं में मासिक धर्म के बारे में सम्पूर्ण जानकारी (माहवारी)

माहवारी / मासिक धर्म / मासिक चक्र क्या होता है?

मासिक चक्र के लिए अन्ग्रेजी शब्द है Menstruation. यह शब्द लैटिन भाषा के Menstruatio s. menses से व्युत्पन्न है. मासिक धर्म महिलाओं में मासिक चक्र की बाह्य अभिव्यक्ति है. माहवारी में, अंड कोशिका की मृत्यु के बाद एक पदार्थ स्त्रावित होता है. अपेक्षित रूप से निषेचित अंडे के लिए एक प्राथमिक आवरण भीतर तैयार किया जाता है, किन्तु एंडोमिट्रियम की झिल्ली का उस उद्देश्य की पूर्ती हेतु उपयोग नहीं होता और यह रक्त-स्त्राव के साथ घटित होता है. इसीलिए, युटेरस से होने वाले रक्त स्त्राव, जिसमें ऐसी शारीरिक व संरचनात्मक परिस्थितियां नहीं होतीं, वो वास्तविक मासिक रक्त स्त्राव नहीं होता. मासिक चक्र यौवनारंभ से रजोनिवृत्ति तक एक विशिष्ट समयांतराल, जो सामान्यतया 28 दिन का होता है, पर पुनरावृत्त होता रहता है. सबसे कम समय का सामान्य अंतराल 21 दिन, और सर्वाधिक अंतराल जो सामान्य माना जाता है वो 35 दिनों का होता है. इससे अधिक या कम अंतराल को आवृत्ति के क्रम में असामान्य माना जाता है. प्रत्येक महिला के मासिक चक्र के अंतराल की अलग-अलग अवधि का कारण आनुवंशिकता और व्यक्तिगत विशेषता हो सकती हैं.

चक्र

जब मासिक धर्म नियमित अंतराल पर आता है तो इस मासिक चक्र को रिदमिक और नियमित कहते हैं. कुछ महिलाओं में उनके जीवन में होने वाले महत्पूर्ण बदलावों के बावजूद मासिक धर्म की नियमितता बनी रहती है. कुछ अन्य महिलाओं के मामले में मासिक भिन्न अंतरालों पर आता है, और ये अंतराल सामान्य या असामान्य हो सकते हैं. ऐसे मामलों में माहवारी को एरिदमिक या अनियमित कहा जाता है. 2-3 दिन का अंतर आम बात है. ऐसा मासिक धर्म जिसमें यह हलकी सी अनियमितता हो किन्तु बाकी सब सामान्य हो तो यह यौनांगों की रोगात्मक अवस्था का द्योतक नहीं है. न्यूरो-वेजीटेटिव और स्नायु-मनोवैज्ञानिक अवस्था या आवेग में, खासकर यदि वातावरण में बदलाव हुआ हो, तो मासिक चक्र की लय में बदलाव आसानी से प्रकट हो सकते हैं. यौवनारंभ, रजोनिवृत्ति और गर्भधारण व गर्भ पात के पश्चात के समय के दौरान, मासिक चक्र की लय का बिगड़ना आम है.

Period28.com पर मासिक चक्र की गणना कैसे करें?

Period28.com अन्य कैलंडरों से अलग है क्योंकि इसमें चक्र की अवधि दर्ज करने की जरुरत नहीं होती. चक्र की अवधि कई महिलाओं को मालूम नहीं होती. यह व्यक्तिगत आंकड़ों के अनुसार आगामी माहवारी का पूर्वानुमान लगाता है.

उदाहरण: जब आप दो लगातार मासिक चक्रों के आंकड़े दर्ज करते हैं तो साईट आपके बताये हुए आंकड़ों के आधार पर गणना कर बताती है कि अगला मासिक कब होगा.

आपमें से वे जो अपने चक्र की अवधि जानते हैं, वे इसे पंजीकरण की शुरुआत में दर्ज कर सकते हैं या बाद में किसी भी समय सेटिंग्स पर जा कर बदल सकते हैं.

अवधि

माहवारी एक निश्चित कालावधि तक चलती है और स्वतः रुक जाती है. माहवारी का औसत काल 5 दिन होता है. दूसरे और तीसरे दिन माहवारी सबसे तीव्र होती है. सामान्य सीमा 3 से 5 दिन होती है, अधिकतम 7 दिन. एक स्त्री के लिए माहवारी की अवधि आमतौर पर समान रहती है और बेहद कम मामलों में इसमें उतार-चढ़ाव आता है. अगर अंतर सच में बढ़ जाता है, तो यह रोगात्मक असामान्यता है. माहवारी के रुकने की प्रणाली वैसी ही होती है जैसी बच्चे को जन्म देते वक्त होती है: खुली रक्त शिराओं पर गर्भाशय के संकुचन के प्रभाव में मांसपेशियों द्वारा दबाव पड़ता है.

माहवारी रक्त के गुण-धर्म

माहवारी रक्त का रंग लाल-भूरा होता है; यह तरल होता है और इसमें आसानी से थक्का नहीं जमता. ऐसा फैलोपियन स्लेश्मल झिल्ली में बने पदार्थों के कारण होता है, जो थक्का ज़माने वाले फरमेंट को असक्रिय, या ख़त्म कर देते हैं. थक्कों की उपस्थिति इस बात का लक्षण है कि रक्त-स्त्राव सामान्य से कहीं अधिक है.

माहवारी रक्त छूने में चिपचिपा होता है, ऐसा इसलिए क्योंकि उसमें सरविकल श्लेष्मा मिश्रित होता है. इसकी एक विशेष गंध भी होती है क्योंकि इसमें योनि की वसा ग्रंथियों से स्त्रावित अशुद्धियाँ भी होती हैं. विखंडीकरण की क्रिया के फलस्वरूप जो योनि या बाह्य जननांगों से आये बैक्टीरिया के कारण हो सकता है, खासकर यदि स्वच्छता का ध्यान न रखा जाता हो तो माहवारी के रक्त में तीक्ष्ण और अरुचिकर गंध हो सकती है, यहाँ तक की यह दुर्गन्ध भी हो सकती है.

सामान्य अवस्था पर प्रभाव

माहवारी एक प्रक्रिया है जो लगभग निरंतर होती रहती है और इसमें सामान्य और स्थानीय कारकों की वजह से गड़बड़ियाँ हो सकती हैं. मात्र 16-18 % को ही कोई शिकायत नहीं होती. कुछ जाने-पहचाने बदलाव, पूर्व-मासिक लक्षण में रक्त-स्त्राव पहले से होने लगता है. कुछ खलल अवधि के मध्य में प्रकट होते हैं. ये गड़बड़ियाँ व्यक्तिपरक और सामान्य प्रकार की होती हैं. अधिकाँश विशिष्ट व्यक्तिपरक संवेदनाएं हैं:

  • कमर और पेट की नीचे दर्द
  • सरदर्द
  • घबराहट
  • थकावट
  • उत्तेजनशीलता में वृद्धि
  • जठरांत्रिय मरोड़ें
  • स्तनों में तनाव
  • सूजन

कई बार एकाधिक गड़बड़ियाँ देखी गयी हैं, उदाहरण के लिए पाचन तंत्र में: भूख में कमी, कुछ विशेष खाद्य के प्रति नापसंदगी, अरुचि, उबकाई, दस्त या कब्ज. नब्ज का बढ़ जाना, कंपकंपी आदि भी देखे गए हैं. वाहिका प्रेरक का अस्थायित्व भी आमतौर पर बड़ी आसानी से मिल जाता है जो गर्मी लगना, तेज पसीना आना, आदि के रूप में परिलक्षित होता है. इसी दौरान, नाक और गले में सूजन आ जाती है. आवाज़ अपनी स्पष्टता और शक्ति खो देती है. त्वचा पर दाने और दाद उभर सकते हैं. वजन बढ़ जाने का अहसासऔर तनाव महसूस होना सामान्य है. उदर में भारीपन का अहसास होता है जो श्रोणी में गतिविधि की अधिकता से होता है, इससे आवेग, खुजली और कई मर्तबा यौन उत्तेजना भी महसूस होती है. ऐसा होना भी आम है.

मासिक चक्र में गड़बड़ियाँ

स्त्रीरोग विशेषज्ञ को प्राप्त होने वाली सर्वाधिक आम शिकायत है, मासिक की गड़बड़ी. ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिकांश महिलाओं को समझ नहीं होती कि माहवारी वास्तव में है क्या और उन्हें इस समय में सावधानी बरतनी चाहिए.

सामान्य चक्र अग्रांकित सीमाओं में बना रहता है: माहवारियों के बीच का अंतर, आगामी माहवारी के प्रथम दिन के अनुसार- 21 से 35 दिन, रक्त स्त्राव की अवधि - 2 से 5 दिन, प्रबलता - 20 से 60 मिली (3-4 सेनेटरी पैड प्रतिदिन).

असामान्य माहवारी तब प्रकट हो सकती है जब: चक्रों के बीच का अंतराल या स्वयं मासिक-चक्र, उपरान्कित सीमाओं के परे घट या बढ़ जावे.

जब कभी सामान्य से अलग कुछ हो, तो स्त्री को तुरंत अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए.

माहवारी में होने वाली प्रत्येक गड़बड़ी यौनांगों में होने वाली बीमारी का प्रथम चिह्न हो सकती है - जलन, गर्भाशय की गठान, गर्भकला-अस्थानता, और अस्थानिक गर्भ. गर्भाशय ग्रीवा, बच्चेदानी या अंडाशय का कैंसर हो सकता है!

कुछ मामलों में, हालाँकि बेहद कम, मासिक चक्र अनियमितता अस्वस्थता का लक्षण न होकर वातावरण के प्रभाव के कारण होती है. यौवनारंभ के दौरान, 12-16 वर्ष के अरीब-करीब, पहले मासिक के पश्चात्, हर तीन में से एक लड़की को अनियमित माहवारी होती है.

यह चरण लगभग २ सालों तक चलता रहता है, इसके बाद मासिक नियमित हो जाते हैं.

अनियमित मासिक धर्म के साथ अचानक वजन का घट-बढ़ जाना, बालों की वृद्धि जैसे लक्षणों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि ये भावी जनन-अक्षमता या अपरिपक्व गर्भ का चिह्न हो सकते हैं. हार्मोन्स का बनना और अंडाणु का विकास लगभग 5 वर्षों की अवधि में रुक जाता है.

मासिक-धर्म से सम्बंधित उत्पाद

सैनिटरी पैड्स

सेनेटरी पैड सोखने वाले स्वच्छता उत्पाद होते हैं, जिन्हें महिलाएं मासिक धर्म के समय इस्तेमाल करती हैं और योनि से रक्त स्त्राव के अन्य मामलों में उपयोग करती हैं. सेनेटरी पैड शरीर से बाहर इस्तेमाल किये जाते हैं, इन्हें योनिमुख और अन्तःवस्त्र में बीच रखा जाता है.

सैनिटरी पैड्स के कई प्रकार हैं: वे रेशम या कपास के बने हो सकते हैं, वे पतले या मोटे हो सकते हैं, विंग्स या बिना विंग्स के हो सकते हैं.

टेम्पोंस

टेम्पोन सूती कपडे का एक छोटा सा बेलनाकार लपेटा हुआ टुकड़ा होता है जिसके एक सिरे पर धागा लटक रहा होता है.

टेम्पोंस अलग-अलग मोटाई के होते हैं, जो रक्त-स्त्राव की तीव्रता पर निर्भर करते हैं. उनकी लम्बाई भी अलग-अलग होती है. विशेष प्रकार के छोटे टेम्पोंस भी मिलते हैं जो कुंवारी लड़कियों के लिए होते हैं, इनसे हाईमन झिल्ली के टूटने का खतरा नहीं होता.

टेम्पोंस को कुछेक घंटों में बदलते रहना चाहिए, और रात में टेम्पोंस की बनिस्पत सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करना चाहिए. टेम्पोंस को बार-बार बदलना बहुत जरुरी है, क्योंकि अगर टेम्पोन ज्यादा अवधि के लिए (उदाहरणार्थ 24 घंटे) इस्तेमाल किया जाए तो इससे आपको नुक्सान पहुच सकता है और यह संक्रमण का कारण बन सकता है.

अण्डोत्सर्ग क्या होता है?

अण्डोत्सर्ग वो समयावधि है जब एक स्त्री के लिए गर्भवती होना संभव होता है.

पिट्युटरी ग्रंथि से स्त्रावित एक हारमोन के प्रभाव में, कुछ अंड कोशिकाएं गर्भाशय में परिपक्व होने लगती हैं. यद्यपि उनमें से केवल एक गर्भाशय की सतह तक पहुँच पाता है जहाँ यह टूटती है और परिपक्व अंड-कोशिका इससे बाहर निकल कर फैलोपियन ट्यूब में चली जाती है. यह अण्डोत्सर्ग होता है. पिट्युटरी ग्रंथि से स्त्रावित एक हारमोन के प्रभाव में, फैलोपियन ट्यूब में, एक पीली आकृति बनती है. यह हारमोन भी संश्लेषित करती है-एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन, जो गर्भाशय झिल्ली पर काम करते हैं ताकि यह निषेचित अंडे के लिए तैयार हो जाये. इसमें परिवर्तन होता है और यह विस्तार में बढ़ जाती है साथ ही इसका रक्त संचार भी बेहतर हो जाता है.

Period28.com पर अन्डोत्सर्ग की गणना

Period28.com पर अण्डोत्सर्ग की गणना मानक पद्धति के आधार पर की जाती है. इसमें पिछले मासिक चक्र की शुरुआत के दिन से गणना कर 14 दिन गिने जाते हैं.

उदाहरण: यदि किसी स्त्री का मासिक चक्र 5 जनवरी को शुरू हुआ. आमतौर पर अण्डोत्सर्ग 14 दिन बाद होता है. मतलब, ये 19 जनवरी को होगा.

यह गणना विश्व स्तर पर महिलाओं के सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर है, हालाँकि सब कुछ काफी व्यक्तिगत तौर पर होता है! वो महिलाएं जो गर्भधारण करना चाहती हैं और अपने अण्डोत्सर्ग के सटीक समय की जानकारी चाहती हैं, उन्हें अण्डोत्सर्ग जांच करनी चाहिए. जांच किट दवा की दुकानों पर मिलता है.

स्त्री के अण्डोत्सर्ग की जानकारी हेतु और भी कई तरीके हैं जैसे तापमान मापना, गर्भाशय ग्रीवा से आ रहे श्लेष्मा की खुद जांच करना, आदि., किन्तु स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार ये तरीके बहुत विश्वसनीय नहीं हैं (उदाहरण के लिए स्त्रियों का तापमान कई अन्य कारणों से भी प्रभावित होता है).

मेरी जानकारी कौन देख सकता है?

आपका खाता व्यक्तिगत है. आपके अलावा जानकारी कोई और नहीं देख सकता.

पैप जांच

पैप जांच क्या होती है?

पेपेनिकोलू (Papanicolaou) जांच (जिसे पैप स्मीयर, पैप जांच, सर्वाइकल स्मीयर, या स्मीयर जांच भी कहते हैं) एक छानबीन हेतु जांच है जिसे स्त्री प्रजनन तंत्र के एन्डोसर्विकल कनाल में संभावित पूर्व-कैंसर और कैंसर प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए किया जाता है. कुछ भी असामान्यता पाए जाने पर अक्सर अधिक गहन नैदानिक प्रक्रिया की जाती है, और, यदि सही समझा जावे तो सर्वाइकल कैंसर की बढ़त को रोकने के उपाय और इलाज किये जाते हैं. यह जांच एक प्रमुख ग्रीक डॉक्टर जोर्जिओ पापानिकोलू ने इजाद की थी और उन्ही के नाम पर इस जांच का नाम रखा गया है.

पैप स्मीयर लेने में, एक स्पेक्युलम का उपयोग योनि मार्ग को खोलने और गर्भाशय की ग्रीवा के बाहरी मुख और एंडोसर्विक्स से कोशिकाओं को इकठ्ठा करने हेतु किय जाता है. इन कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है. इस जांच का उद्देश्य पूर्व कैंसरजन्य बदलावों (सर्विकल इंट्रापीथेलिअल नेओप्लासिया या सीआईएन या सर्विकल डिसलैपसिया) का पता लगाना होता है, जो सामान्यतया यौन संपर्क द्वारा फैलाये मानव पैपिलोवायरस से जनित होते हैं. यह जांच एक प्रभावी, अधिकाँशतः उपयोग में ली जाने वाला तरीका है जिससे पूर्व-कैंसर और सर्वाइकल कैंसर का आरंभिक अनुमान और पता लगाया जाता है. इस टेस्ट से एंडोसर्विक्स और एंडोमिट्रियम में संक्रमण और असामान्यता का भी पता लगाया जा सकता है.

आम तौर पर, ऐसे देश जहाँ पैप स्मीयर जांच एक सामान्य बात है, यह सलाह दी जाती है कि वे महिलाएं जो विवाहित हैं या यौन-संपर्क में आ चुकी हैं, उन्हें समय-समय पर पैप स्मीयर जांच करवा लेनी चाहिए. यह जांच 3 से 5 वर्षों में एक बार करवा सकते हैं. यदि परिणाम असामान्य आते हैं तो, आसामान्यता की प्रकृति के अनुसार, जांच छ से बारह माह में एक बार की आवृत्ति से करना जरुरी हो सकता है. यदि असामान्यता की और अधिक गहनता से जांच जरुरी हो तो मरीज को कोल्पोसकॉपी के द्वारा सर्विक्स के विस्तृत निरिक्षण हेतु भेजा जाना चाहिए. मरीज को एचपीवी डीएनए जांच के लिए भी भेजा जा सकता है, यह जांच पैप जांच की सहायक जांच के रूप में मददगार सिद्ध हो सकती है. अतिरिक्त जैव-चिह्न जो पैप जांच की सहायक जांच के रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं, वे हैं

जांच के प्रकार:

पारंपरिक पैप

पारंपरिक पैप स्मीयर में, नमूने को सीधा माइक्रोस्कोप की कांच-पट्टिका पर लिया जाता है.

तरल आधारित कोशिका विज्ञान

पैप स्मीयर नमूने को परिरक्षक (प्रिसेर्वेटिव) से भरी बोतल में दाल दिया जाता है और फिर प्रयोगशाला को भेज दिया जाता है, जहाँ इस नमूने को कांच-पट्टिका पर लगा परिक्षण किया जाता है.

अतिरिक्त रूप से, एक एचपीवी जांच की जाती है. या तो असामान्य पैप नतीजों की वजह से या कुछ मामलों में दोनों जांच की जाती हैं.

संकेत

प्राथमिक जांच के दिशा-निर्देश अलग-अलग देशों में अलग-अलग हैं. आम तौर पर प्राथमिक जांच या स्क्रीनिंग 20 या 25 वर्ष में शुरू होती हैं और 50 या 60 साल की उम्र तक चलती है. स्क्रीनिंग औसतन हर 3 से 5 साल में करवाने की सलाह दी जाती है, जब तक कि परिणाम सामान्य आते रहें.

एक महिला को अपने प्रथम यौन-संपर्क के कुछ साल बाद तक इंतज़ार करना चाहिए और उसके बाद स्क्रीनिंग या प्राथमिक जांच शुरू करवानी चाहिए. 21 वर्ष से पहले स्क्रीनिंग नहीं करवानी चाहिए. अमेरिकन कांग्रेस ऑफ़ ओब्सटेट्रीशियन एंड गाईनेकोलोजिस्ट्स एवं अन्य २१ वर्ष पर स्क्रीनिंग शुरू करने की सलाह देते हैं. (क्योंकि यही वह उम्र है जब अधिकाँश अमेरिकन महिलाएं को अपने पहला यौन अनुभव किये कुछ वर्ष बीत चुके होते हैं). कई अन्य देश 25 साल तक की प्रतीक्षा करते हैं. उदाहरण के लिए, ग्रेट ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में स्क्रीनिंग शुरू करने की उम्र 25 वर्ष है.

अधिकाँश महिलाओं को जिन्हें एचपीवी संक्रमण होता है, उन्हें ये यौन-सक्रिय के होने कुछ समय में ही हो जाता है. शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को औसतन 1 वर्ष पर कुछ मामलों में ४ वर्ष तक लगते हैं शुरूआती संक्रमण को नियंत्रित करने में. इस दौरान की गयी स्क्रीनिंग जांच में इस प्रतिरोधक प्रतिक्रिया और हलकी असामान्यता का पता पड सकता है. यह असामान्यता आम तौर पर सर्वाइकल कैंसर से जोड़ कर नहीं देखी जाती पर एक महिला को इससे तनाव हो सकता है और स्क्रीनिंग के नतीजों के कारण आगे के कई टेस्ट / जांचें और इलाज करवाना पड़ सकता है. आम तौर पर सर्वाइकल कैंसर बढ़ने में समय लेता है, अतः स्क्रीनिंग जांच को कुछ वर्ष खिसका देने से संभावित पूर्व कैंसर जन्यता को पहचान सकने की समस्या नहीं होगी. उदाहरण के लिए, 25 से पहले स्क्रीनिंग शुरू करने से 30 के भीतर की महिलाओं के कैंसर के खतरे की दर कम नहीं होती.

वो महिलाएं जिनका कोई यौन संपर्क नहीं हुआ है, उनकी स्क्रीनिंग जांच का कोई फायदा नहीं (या बेहद कम) है. उदाहरण स्वरुप, यूनाइटेड स्टेट्स प्रिवेंटिव सर्विसेज टास्क फ़ोर्स प्रथम यौन संपर्क के बाद कम से कम तीन साल प्रतीक्षा करने की अनुशंषा करती है. HPV एचपीवी स्त्रियों के मध्य यौनसंपर्क से भी फ़ैल सकता है, अतः वे महिलाएं जिन्होंने केवल महिलाओं के साथ ही यौन सम्पर्क किया है, उन्हें भी स्क्रीनिंग जांच करवानी चाहिए, हालाँकि इन महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर का खतरा कुछ कम होता है.

स्क्रीनिंग की आवृत्ति पर दिशा-निर्देश अलग अलग हैं. जिन्हें पहले कोई असामान्यता (स्मीयर में) नहीं थी उनके लिए 3 से 5 वर्ष. कुछ पुरानी सलाह कहती हैं कि प्रत्येक 1 से 2 साल, हालाँकि इतनी अधिक आवृति पर स्क्रीनिंग करवाने के पक्ष में मुश्किल से ही कोई सबूत है; सालाना स्क्रीनिंग का बहुत कम फायदा है पर खर्चा बहुत ज्यादा है और कई अनावश्यक प्रक्रियाएं और इलाज करवाने पड़ते हैं. 1980 के पहले ही यह मान लिया गया था कि अधिकाँश महिलाओं को कम आवृत्ति पर स्क्रीनिंग करवाई जा सकती है. कुछ निर्देशों के अनुसार, आवृत्ति उम्र पर निर्भर करती है; उदाहरण के लिए ग्रेट ब्रिटेन में, 50 की भीतर की महिलाओं के लिए हर तीन साल में, और इसके ऊपर हर 5 साल में एक बार.

65 की उम्र के बाद स्क्रीनिंग रोक देनी चाहिए जबतक कि कोई असामान्यता या बीमारी न हो. 60 से अधिक की महिलाएं जिनके पिछले टेस्ट में कोई खराबी नहीं देखी गयी, उनके स्क्रीनिंग टेस्ट का कोई फायदा नहीं. USPSTF, ACOG, ACS and ASCP के अनुसार यदि किसी महिला के पिछले तीन पेप परिणाम ठीक /सामान्य आये हैं तो 65 के बाद स्क्रीनिंग की कोई जरुरत नहीं; इंग्लैंड की NHS कहती है 64. पूर्ण गर्भाशयोच्छेदन के बाद, जिसमें कुछ गलत पकड़ में नहीं आता, स्क्रीनिंग करवाते रहने की आवश्यकता नहीं.

एचपीवी टीका लगवा चुकी महिलाओं के लिए भी पैप स्मीयर जांच करवाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि टीके एचपीवी के सभी प्रकारों, जिनसे सर्वाइकल कैंसर हो सकता है, से रक्षा नहीं करते. इसके अलावा टीके, टीकाकरण से पहले हो चुके संक्रमण से भी रक्षा नहीं करते.

एक असामान्य पैप स्मीयर, या असामान्य पैप या बायोप्सी के इलाज के बाद, या कैंसर के इलाज के बाद ज्यादा आवृति पर पैप स्मीयर करवाने की आवश्यकता पड़ सकती है.

सर्वाइकल स्क्रीनिंग प्रक्रिया

सर्वोत्तम परिणामों के लिए, पैप जांच तब नहीं करवानी चाहिए जब कि महिला मासिक चक्र से गुजर रही हो. यद्यपि, पैप स्मीयर महिला के मासिक धर्म के दौरान किया जा सकता है, खासकर यदि चिकित्सक तरल-आधारित जांच कर रहा हो; यदि रक्त-स्त्राव काफी ज्यादा हो रहा हो तो एंडोमीट्रियल कोशिकाएं सर्वाइकल कोशिकाओं को छुपा या कम कर सकती हैं, और इसलिए अधिक रक्त-स्त्राव की दशा में पैप स्मीयर की सलाह नहीं दी जाती.

पैप स्मीयर प्राप्त करना कष्ट प्रद नहीं है, पर ऐसा हो सकता है अगर मरीज को कुछ विशेष बीमारी, जिनका इलाज ना कराया गया हो, हों जैसे ग्रीवा संकुचन, या योनि-संकुचन, या जो व्यक्ति जांच का नमूना ले रहा हो वो असावधान या कठोर हो, या गलत आकार का वीक्षक इस्तेमाल कर रहा हो. मरीज को दर्द होने पर इसके बारे में बताना चाहिए. कई महिलाओं को इसके बाद हलके दस्त या निशान का अनुभव होता है.

कई स्वास्थ्य सेवा प्रदाता इस मिथ्याभास में होते हैं कि वीक्षक को चिकना करने के लिए केवल जीवाणु-रहित पानी काम में लेना चाहिए और चिकना करने वाले पदार्थ का उपयोग नहीं करना चाहिए. इससे अनावश्यक असुविधा उत्पन्न होती है.कई अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि कम मात्रा में जल-आधारित जेल लुब्रिकेंट के इस्तेमाल से पैप स्मीयर पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता. इसके अलावा, कोशिकाविज्ञान पर भी कोई प्रभाव नहीं होता और ना ही एसटीडी जांच पर ही.

स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी महिला की योनि में वीक्षक डालने से इसकी शुरुआत करती है, जो योनि को कुछ खोल देता है और गर्भाशय ग्रीवा तक पहुंचना आसान हो जाता है. स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी तब कोशिकाओं का नमूना बाह्य मुख से या गर्भाशय ग्रीवा से एलिसबरी स्पैचुला से खुरच कर प्राप्त करते हैं. एक एंडोसर्विकल ब्रश गर्भाशय ग्रीवा की मध्य भाग के मुख पर घुमाया जाता है. कोशिकाओं को कांच की पट्टिका पर रखा जाता है और फिर प्रयोगशाला को जांच हेतु भेज दिया जाता है.

कई मर्तबा प्लास्टिक के पत्तों से बनी छोटी सी झाड़ू जैसा उपकरण, स्पैचुला और ब्रश के स्थान पर काम में लिया जाता है. झाड़ू नमूना लेने हेतु उतना अच्छा उपकरण नहीं है, क्योंकि यह एंडोसर्विकल नमूने लेने में स्पैचुला और ब्रश के मुकाबले काफी कम असरदार है. तरल-आधारित कोशिकाविज्ञान की प्रगति के साथ झाड़ू नुमा उपकरण का प्रयोग बढ़ गया है, हालाँकि दोनों में से कोई भी उपकरण दोनों प्रकार के कोशिविज्ञान तकनीक से जांच हेतु इस्तेमाल किये जा सकते हैं.

पैपानिकोलू तकनीक के इस्तेमाल से नमूने को रंग दिया जाता है, जिसमें टिंकटोरियल डाई और अम्लों को कोशिकाएं अपने में जज्ब कर लेती हैं. दागरहित (बिना रंग) कोशिकाएं कम शक्ति के माइक्रोस्कोप से नहीं देखी जा सकतीं. पैपानिकोलू ने वे रंग चुने थे जो कोशिकाद्रव्य के केराटीनिकरण को उभार कर दिखाता था, जिसका वास्तव में कोशिका के नाभिकीय विशेषताओं (जिनके आधार पर रोग पहचान की जाती थी) से लगभग कोई सम्बन्ध या प्रभाव नहीं होता था.

कुछ मामलों में, एक कंप्यूटर सिस्टम पट्टिकाओं की पूर्व स्क्रीनिंग/जांच कर सकते है और इंगित कर सकता है कि कहाँ परीक्षण की आवश्यकता नहीं है और कहाँ विशेष ध्यानं देने की जरुरत है. इसकी बाद नमूना आम तौर पर विशेष तौर पर प्रशिक्षित और योग्यता प्राप्त कोशिका-विज्ञानं तकनीक विशेषज्ञ के द्वारा हलके माइक्रोस्कोप के जरिये जांचा जाता है. जांच करते हेतु प्रयुक्त शब्द अलग-अलग देशों में अलग-अलग है; यू.के. में इसे साईटोस्क्रीनर्स (कोशिका जांचकर्ता), जैवचिकित्सा वैज्ञानिक (बायोमेडिकल साइंटिस्ट्स), उच्च विशेषज्ञ चिकितासक और रोगविज्ञानी के नाम से जाने जाते हैं. अंत के दो असामान्य नमूने की सोचना और रिपोर्टिंग की लिए जिम्मेदारी लेते हैं जहाँ आगे और जांच और निरिक्षण की आवश्यकता होती है.

पैप जांच की प्रभावकारिता

पैप जांच, स्क्रीनिंग जांच और उपयुक्त तत्पश्चात कार्यक्रम के साथ, सर्वाइकल (गर्भाशय ग्रीवा) कैंसर से मृत्यु के खतरे को 80% तक कम कर सकती है.

पैप जांच से कैंसर की रोकथाम में असफलता कई कारणों से हो सकती है, जिसमें नियमित स्क्रीनिंग जांच ना करवाना, असामान्य नतीजों पर कार्यवाही ना करना, एवं नमूना और अर्थ निकलने में त्रुटी जैसे कारण शामिल हैं. अमेरिका में, आधे से भी अधिक इनवेसिव (तेजी से फैलने वाले) कैंसर उन महिलाओं में पाए गए हैं जिन्होंने कभी पैप जांच नहीं करवाई थी; अतिरिक्त 10 से 20 % कैंसर के मामले उन महिलाओं में पाए गए जिन्होंने पिछले 5 सालों में पैप स्मीयर नहीं करवाया था. लगभग एक चौथाई अमेरिकी महिलाओं में कैंसर के मामले उन महिलाओं में थे जिनकी पैप स्मीयर असामान्य थी, पर उन्होंने उस पर यथोचित कार्यवाही नहीं की (महिलाएं इलाज के लिए नहीं लौटी या क्लिनिक ने अनुशंसित जांचें या इलाज नहीं किया).

देखा गया है कि गर्भाशय ग्रीवा के अडिनोकारसिनोमा (एक प्रकार का ट्यूमर) की रोकथाम पैप जांचों से नहीं होती. यू.के. में, जहाँ पैप स्मीयर स्क्रीनिंग कार्यक्रम चलता है, अडिनोकारसिनोमा 15% सर्वाइकल कैंसर का जिम्मेदार ठहराया गया है.

युनाइटेड किंगडम के कॉल व रिकॉल प्रणाली/तंत्र की प्रभावित के अनुमानों में काफी अंतर है, पर यह यू.के. में 700 मौतों को सालाना रोक सकता है. एक चिकित्सक जो 200 जांचें प्रति वर्ष करता है वो 38 साल में एक मृत्यु को रोक सकता है, इस दौरान वो 152 असामान्य नतीजों/रिपोर्ट वाली महिलाओं को देखेगा, 79 को निरिक्षण-परिक्षण के लिए कहेगा, 53 असामान्य बायोप्सी परिणाम प्राप्त करेगा, और 17 मामलों में असामान्यताओं को लगातार २ वर्ष तक चलते देखेगा. कम से कम एक महिला 38 वर्षों के दौरान, स्क्रीनिंग के बावजूद, सर्विकल कैंसर से मृत्यु को प्राप्त हो जायेगी.

चूँकि यू.के. की जनसँख्या लगभग 6 करोड़ 10 लाख है, अधिकतम महिलाएं जो पैप स्मीयर करवा सकती है उनकी संख्या 1.5 करोड़ से 2 करोड़ होगी (20 से कम और 65 से ज्यादा उम्र वाली जन संख्या को हटा देने पर). यह इस बात का सूचक है कि पैप स्मीयर स्क्रीनिंग का उपयोग वहां हर 20000 जांच से गुजरे व्यक्तियों में से एक की जान बचाता है (यह मानने पर कि 1.5 करोड़ लोगों की जांच हर साल होती है). यदि 1 करोड़ लोग ही असल में हर साल जांचे जाते हैं, तो हर 15000 जांचे गए लोगों में से एक की जान यह बचा लेगा.